Saturday 22 March 2014

शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हरबरस मेले , वतन  पर मिटने वालों का वाकी यही निशाँ होगा

जब 23 वर्ष के भगत सिंह शहीद हुए, उस वक्त गांधी जी की उम्र 62 वर्ष थी पर लोकप्रियता के मामले में भगत सिंह कहीं से कम नहीं थे. और एक समय भगत सिंह की लोकप्रियता महात्मा गाँधी से उपर थी यही बात कांग्रेस के लिए चिंता का सबब थी ..

महात्मा गाँधी ने भगत सिंह के फांसी की सजा माफ़ करवाने के लिए अपने पत्र में इतना ही लिखा कि इनको फाँसी न दी जाए तो अच्छा है. इससे ज़्यादा ज़ोर उनकी फाँसी टलवाने के लिए गांधी ने नहीं दिया.

गांधी ने इरविन के साथ 5 मार्च, 1931 को हुए समझौते में भी इस फाँसी को टालने की शर्त शामिल नहीं की. जबकि फाँसी टालने को समझौते का हिस्सा बनाने के लिए उनपर कांग्रेस के अंदर और देशभर से दबाव था........

आखिर इसके पीछे गाँधी जी की मंशा क्या थी

वहीँ दूसरी और गांधी की बजाय सुभाषचंद्र बोस इस फाँसी के सख़्त ख़िलाफ़ थे और कांग्रेस में रहते हुए उन्होंने गांधी से परे जाकर इस फाँसी के विरोध में दिल्ली में 20 मार्च, 1931 को एक बड़ी जनसभा भी की. गांधी जी के विरोध के बाद भी .......

गाँधी जी को भगत सिंह के आदोलन में हिंसा दिखाई दी ..लेकिन अंग्रेजो ने जिस तरह से नियम के खिलाफ जाकर एक दिन पहले रात में फांसी दे दी ..और फिर उनके शरीर को क्षत विक्षत करके व्यास नदी के किनारे जला दिया और भीड़ को आते देख कर उनके शरीरों को नदी में बहा कर भाग गए ......इस कृत्य में गांधी जी को पता नही कहाँ से अहिंसा दिखाई दी और न अंग्रेजो के सामने उनके इस कृत्य की भर्त्सना की और न ही कभी अनशन पर बैठे ...

शायद भगत सिंह की मौत गांधी जी की नैतिक हार थी ...और भगत सिंह हमेशा के लिए देश के नौजवानों के प्रेरणा स्त्रोत बन कर अमर हो गए .......

भगत सिंह , राजगुरु और सुख देव की शहीदी दिवस पर इन अमर शहीदों को शत शत नमन