Saturday 1 February 2014

कभी चल दिए
कभी रुक गए
कभी भटक गए
चलते चलते
गुजार दी यूं ही उम्र सारी
कभी होश में
कभी नींद में
यूं ही जिन्दगी के
सितम सह गए
तू जहाँ मिला तुझे
देख कर नज़र न मिली
न जुबां हिली
यूं ही सर झुका के
गुजर गए
कभी जुल्फ पर कभी चश्म पर
कभी  तेरे हसीं वजूद पर
जो पसंद थे वो शेर सारे
मेरी किताब में विखर गए
मुझे याद है कभी  एक थे
मगर आज हम है जुदा जुदा
वो जुदा होकर संवर गए
हम जुदा होकर बिखर गए
कभी अर्श पर ,कभी फर्श पर
हो गए दर बदर आज हम
उनकी याद में
पता नहीं हम कहाँ कहाँ से
गुजर गए
कहाँ कहाँ से गुजर गए

1 comment:

  1. पता नहीं हम कहाँ कहाँ से
    गुजर गए !! दिल को छू लेने वाली रचना !! बहुत सुंदर

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