सेकुलरो के दुष्प्रचार का शिकार मैकाले और उसकी शिक्षा नीति
२फ़रवरी १८३५ को ब्रिटेन की संसद में मैकाले की भारत के प्रति विचार और योजना मैकाले के शब्दों में
" मैं भारत के कोने कोने में घुमा हूँ..मुझे एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं दिखाई
दिया, जो भिखारी हो ,जो चोर हो, इस देश में मैंने इतनी धन दौलत देखी
है,इतने ऊँचे चारित्रिक आदर्श और इतने गुणवान मनुष्य देखे हैं,की मैं नहीं
समझता की हम कभी भी इस देश को जीत पाएँगे,
भारत में 'थामस बैबिंगटन मैकाले' के विरुद्ध दुष्प्रचार है, वह हिन्दू हित का बहुत बड़ा समर्थक था। पर भारत के सेक्युलरों ने अपने कुकृत्यों को उस पर थोप कर उसे गालियाँ सुनवा रहे हैं।
हिन्दू इतने बेवकूफ हैं की सेक्युलरों की जाल में फंस कर अपने एक बहुत बड़े
शुभचिंतक को गालियाँ देते हैं। इसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव यह है कि विदेशों
में अब कम हीं लोग हिन्दुत्व के समर्थन में खड़े हो पाते हैं, उन्हें डर
होता है कि कहीं हिन्दू हीं उन्हें अपना शत्रु ना समझ ले।
सम्पूर्ण भारत में 'एंग्लो-संस्कृत' कालेज इस्ट इण्डिया कंपनी/ब्रिटिश इंडिया शाषण से किसने खुलवाया था?
वह कौन सा नीति निर्माता था जिसने कहा था कि भारतियों की शिक्षा को
अरबी-फारसी एवं उर्दू जैसे जाहिल और गर्त-गामी सभ्यताओं की भाषा से मुक्त
करना होगा, तभी भारतीयों का कल्याण हो सकता है।
मेकाले ने संस्कृत को
सम्पूर्ण भारत की एक मात्र भाषा माना था परन्तु उस ने यह भी अपनी रिपोर्ट
में प्रस्तुत किया था की ७ ० ० वर्षों की इस्लामी गुलामी ने हिन्दुओ की इस
उत्कृष्ट भाषा का लगभग सफाया कर दिया है। अतः जब तक भारतीय संस्कृत को पुनः
स्थापित नहीं कर लेते तब तक उनको मुस्लिम भाषाओँ एवं संस्कृति की गन्दी
छाया से मुक्त करने के लिए अंग्रेजी की आवश्यकता है। फिर हिन्दू
'एंग्लो-संस्कृत' कालेजों के मध्यम से संस्कृत पढ़ कर अपने गौरव को प्राप्त
करेंगे।
मेकाले को इस लिए मुस्लिम और सेक्युलर गाली देते हैं कि उस ने अरबी, फारसी और उर्दू को जड़ से हीं नकार दिया था।
यहाँ ध्यान देने वाला विषय यह है कि मेकाले अपनी रिपोर्ट की प्रस्तुति
किसी बंद कमरे में बैठ कर स्कॉच पीते हुए नहीं किया था, बल्कि इंग्लॅण्ड से
भारत की कष्टप्रद समुद्री यात्रा एवं सम्पूर्ण भारत में भ्रमण (तब रेल भी
नहीं था) कर के अनेक भारतीय विद्वानों से विचार विमर्श करने के बाद दिया
था। ब्रिटिश पार्लियामेंट में प्रस्तुत उसकी रिपोर्ट में पुरी एवं
श्रृंगेरी के जगतगुरु शंकराचार्य से मीटिंग का सविस्तार उल्लेख है। आपको
यहाँ यह बताना भी आवश्यक है कि अरबी फारसी और उर्दू के कुप्रभाव से
भारतियों के सांस्कृतिक एवं धार्मिक इस्लामीकरण को मेकाले ने बहुत अच्छी
तरह पहचाना और उस से हिन्दुओं को बचा लिया।
मेकाले से ईश्वरचंद्र
विद्यासागर एवं राजा राममोहन राय ने विस्तार पूर्वक (लगभग) तीन महीने तक
मेकाले के साथ उस रिपोर्ट के लिए काम किया था। इन दोनों महानुभाओं एवं श्री
बंकिम चन्द्र चटोपाध्याय जी का यह अभिमत था कि लगभग १ ० ० ० वर्ष की अनवरत
दासता ने भारतीयों को विश्व के एनी राष्ट्रों की तुलना में बहुत पीछे छोड़
दिया है, अतः यदि अंग्रेज अपना ज्ञान, विज्ञान, अभियांत्रिकी, चिकित्षा
शास्त्र, दर्शन, न्याय आदि दे कर भारतियों को इस्लाम की ताबेदारी से मुक्त
करा दें तो हम २ ५ करोड़ हिन्दू अंग्रेजों के बहुत ऋणी होंगे। मेकाले ने
राजा राममोहन राय का उल्लेख करते हुवे यह भी कहा था कि जब भारतीय जाहिल और
बर्बर मुसलमानों की भाषा को सैकड़ो सालों तक बेमन से ढो सकते हैं तो ज्ञान
विज्ञानं से परिपूर्ण अंग्रेजी को तब तक के लिए स्वीकार करना चाहिए जब तक
की हम सम्पूर्ण भारत के लिए संस्कृत को पुनर्स्थापित नहीं कर लेते।
सेक्युलरों ने मेकाले की स्थापित इस प्रक्रिया को नष्ट कर, दोस उसके माथे मढ़ दिया और हम हिन्दू मेकाले को गाली दे रहे हैं।
तब तक के लिए दो और मूलभूत बातें आपको जाननी चाहिए -
(१) मेकाले स्वयं इसाइयत का विरोधी था, अतः उस ने कान्वेंट शिक्षा का
विरोध किया और उस की अपेक्षा सरकारी स्कूल का एक पूरा तंत्र खड़ा करवाया था;
जिसे अब सोनिया की सरकार नष्ट कर रही है।
(२) संस्कृत में जो ज्ञान है
उसको सम्पूर्ण विश्व तक पहुँचाने के निमित मेकाले ने ब्रिटिश पार्लियामेंट
में एक प्रस्ताव पारित करवाया था, उसके बाद ऑक्सफोर्ड में संस्कृत एवं
वैदिक ज्ञान के अध्यन का केंद्र खुला। मेकाले के अनुशंसा से हीं
मैक्समूलर को भारत आ कर वेदों का अनुवाद करने का कार्य सौप गया था।
एक
और महत्वपूर्ण विषय है, मेकाले हैदराबाद के निज़ाम से भी मिले थे और निज़ाम
ने उन्हें अरबी को भारत की शिक्षा का माध्यम बनाने की प्रस्तावना के लिए
'रिश्वत' की पेशकश की थी। मेकाले ने उस के पेशकस को ठुकराते हुवे अरबी,
फारशी और उर्दू को नाकारा और तर्क पूर्वक यह प्रमाणित किया कि मदरसा शिक्षा
क्यों रोकी जानी चाहिए।
पुणे विश्वविद्यालय का गणित एवं संस्कृत विभाग मेकाले की देंन है।
शायद आज जरूरत मैकाले के बारे में निष्पक्ष मूल्याङ्कन की आवश्यकता है..लेकिन क्या हमारे तथाकथित सेक्युलर रहनुमा ऐसा होने देंगे .इसमें संदेह है ये छोटा सा प्रयास डॉ राकेश रंजन के सहयोग और उनके द्वारा उपलब्ध करवाई गयी जानकारी के द्वारा ही संभव हो पाया है ताकि मैकाले के बारे में जो भ्रान्तिया इस देश में फैलाई गयी है वो दूर की जा सके
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