माना
दुनिया के लिए पत्थर सा है ये मेरा मन....... देखना मुश्किल है क्या है
इसमें , लेकिन तुम्हारे लिए तो शीशा ही रहेगा. जब भी झांकोगी , जान लोगी
क्या है, क्यूँ है.......लेकिन उस दिन ये सच में पत्थर हो जायेगा जिस दिन
तुम्हारा कोई वजूद इसमें नहीं रह जाएगा ....उस दिन न मैं-मैं रहूँगा और न
तुम--तुम.......... जब वक्त चला देगा इस पर अपने निर्मम छेनी हथौड़े
..........
इतना ही काफी है ...अब फिर कभी न कहना की कुछ छिपा रहे हो तुम हमसे .....
इतना ही काफी है ...अब फिर कभी न कहना की कुछ छिपा रहे हो तुम हमसे .....
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