Saturday 1 February 2014

माना दुनिया के लिए पत्थर सा है ये मेरा मन....... देखना मुश्किल है क्या है इसमें , लेकिन तुम्हारे लिए तो शीशा ही रहेगा. जब भी झांकोगी , जान लोगी क्या है, क्यूँ है.......लेकिन उस दिन ये सच में पत्थर हो जायेगा जिस दिन तुम्हारा कोई वजूद इसमें नहीं रह जाएगा ....उस दिन न मैं-मैं रहूँगा और न तुम--तुम.......... जब वक्त चला देगा इस पर अपने निर्मम छेनी हथौड़े ..........

इतना ही काफी है ...अब फिर कभी न कहना की कुछ छिपा रहे हो तुम हमसे .....

No comments:

Post a Comment